INTERNATIONAL JOURNAL OF SCIENTIFIC DEVELOPMENT AND RESEARCH International Peer Reviewed & Refereed Journals, Open Access Journal ISSN Approved Journal No: 2455-2631 | Impact factor: 8.15 | ESTD Year: 2016
open access , Peer-reviewed, and Refereed Journals, Impact factor 8.15
वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर विवेचनोपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भारतीय संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था विश्व की सबसे पुरातन मानव सभ्यता की जीवन पद्धति हैÊ जो वैदिक काल से लेकर आज तक समतामूलक सामाजिक सिद्धांतों पर आधारित है। वैदिककाल से ही भारत ज्ञानविज्ञान में महान विश्व गरू रहा है। विश्व के प््रााचीनतम ग्रंथ वेदों में चातुर्वण्र्य सामाजिक वर्ण व्यवस्था का वर्णन मिलता है जोकि समृद्धशाली सामाजिक वर्ण व्यवस्था का परिचायक हैऌ जिसे ब््रााह्म्णÊ क्षत्रीयÊ वैश्य तथा शूदों में वर्गाीकृत किया गया। वस्तुतÁ पूर्व कर्मानुसार शरीरÊ वर्तमान शरीर सापेक्ष वर्णÊ वर्ण सापेक्ष आश्रमÊ वर्णाश्रम सापेक्ष कर्म व्यवस्था है यही सनातन का सार है। कालान्तर में वाह्य आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण कर वैदिक संस्कृति व परम्पराओं को तहस नहस कर दिया और बड़ी चतुराई से सनातन धर्म को दोषपूर्ण दर्शा कर सम्पूर्ण शूद्रवर्ग को हिन्दू संस्कृति में निकृष्ट बताकर समाज में अश्पृश्यता की भावना के साथ ही उनमें वैमनस्यता का विष घोल दिया। एक ओर शासकों ने अपनेअपने सम्प््रादाय का प््राचार कर शूद्रों को प््रालोभन देकर धर्म परिवर्तन के लिए आसक्त किया। वहीं दूसरी तरफ कुछ प््राबुद्ध व चतुर किस्म के धर्मानुलम्बियों ने सनातन धर्म को जाति की आड़ में दलितों को गरीबÊ पिछड़ेÊ दबेकुचलेÊ प््राताड़ितÊ उत्पीड़ितÊ शोषितÊ अश्पृश्य जैसे शब्दों से परिभाषित कर भारत की सामाजिक सदभावना को छिन्नभिन्न करने का प््रायास किया और स्वयं को दलितों के मसीहा के रूप में साहित्य के माध्यम से प््रास्तुत करने में सफल रहेÊ जोकि राजनीतिक आकांक्षाओं से प््रोरित प््रातीत होता हैं। दलितों के प््राथम राजा छत्रपति शाहू जी महाराज ने गरीबों को शीघ््रा न्यायÊ मुफ्त शिक्षाÊ किसानों को स्थायी मदद जैसे उपायों से समाज में जन सहभागिता व सदभाव की भावना पैदा की। भारत के संविधान में समतामूलक ‘अनुसूचित जनजाति’ पवित्र शब्द का प््रायोग किया गया और उन्हें सामाजिकÊ आर्थिक व राजनीतिक आरक्षण का लाभ देकर सामाजिक असमानता को मिटाने के भरसक प््रायास किये गएÊ यह प््रायास आज भी जारी हैं। वस्तुतÁ दलित चेतना का आन्दोलन अस्सी के दशक में चरम पर था जिससे समाज में बराबरी के अधिकारÊ प््रातिनिधित्व और सम्मान हासिल करने तथा दलितों में व्याप्त अंधविश्वास को दूर करने के लिए दलित साहित्यकारों ने लेखन परम्परा में अविस्मरणीय योगदान दिया। अब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर लोकतांत्रिक परम्परा के अनुरूप अमृत महोत्सव मना रहा है। वर्तमान शासन व्यवस्था में राजनीतिक प््रायासों से आरक्षण नीति को बरकरार रखते हुए गरीबी उन्मूलन के लिए लक्ष्य निर्धारित किये हैं जिनके तहत सर्व जनहित योजनाओं के माध्यम से हम सबका साथÊ सबका विकासÊ सबका विश्वास और सबका प््रायास के सिद्धांत पर निरन्तर भारत आगे बढ़ रहा है। हम साहित्य के माध्यम से दलितों को समाज की अग्रिम पंक्ति में स्थान दिलाने के लिए प््रातिबद्ध हैं।
Keywords:
Dalit Vimarsh
Cite Article:
"यथार्थवादी दलित विमर्श", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijsdr.org), ISSN:2455-2631, Vol.8, Issue 11, page no.293 - 296, November-2023, Available :http://www.ijsdr.org/papers/IJSDR2311043.pdf
Downloads:
000338719
Publication Details:
Published Paper ID: IJSDR2311043
Registration ID:209277
Published In: Volume 8 Issue 11, November-2023
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: 293 - 296
Publisher: IJSDR | www.ijsdr.org
ISSN Number: 2455-2631
Facebook Twitter Instagram LinkedIn